पिछले तीन महीने में कांग्रेस समेत दूसरे दलों के नेता बीजेपी में शामिल हुए हैं। इनमें सामान्य, ओबीसी, एससी, एसटी सभी वर्ग के नेता शामिल हैं। लेकिन, जो बड़े चेहरे हैं वो ज्यादातर ब्राह्मण वर्ग से आते हैं। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके सुरेश पचौरी, संजय शुक्ला, अरुणोदय चौबे, आलोक चंसोरिया जैसे नाम शामिल हैं।
मप्र की राजनीति में एक समय में ब्राह्मणों का वर्चस्व हुआ करता था। लेकिन समय के साथ उनके वर्चस्व और रसूख में कमी आती गई। नवंबर 1956 में मप्र राज्य के गठन के बाद साल 1990 तक पांच ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने करीब 20 सालों तक शासन किया। इसके बाद पिछले तीस सालों से कोई ब्राह्मण चेहरा प्रदेश की सियासत में उभर नहीं सका है।
जानकार मानते हैं कि चाहे वह कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही राजनीतिक दलों का जाति आधारित सियासत पर जोर रहा है। कांग्रेस में तो ब्राह्मण वर्ग से आने वाले नेता 80 के दशक के बाद हाशिए पर चले गए। बीजेपी ने 20 सालों में पहली बार राजेंद्र शुक्ल को डिप्टी सीएम बनाकर इस वर्ग को तवज्जो दी है।
ऐसे में जानकारों का मानना है कि कांग्रेस से जुड़े ब्राह्मण चेहरों को लगता है कि बीजेपी उनके लिए मुफीद है। वे इसकी एक और वजह मानते हैं कि जिस तरीके से बीजेपी ने सनातन संस्कृति को बढ़ावा देने और कांग्रेस को सनातन विरोधी करार देने की मुहिम छेड़ रखी है। उसे ब्राह्मण वर्ग से आने वाले चेहरों की उसे जरूरत हैं। यानी दोनों एक दूसरे की जरूरत बने हुए हैं।